ये मेरी दोस्त, मेरी यार, मेरी हमराज़, हमदर्द॥ कुल मिलाकर ले दे कर एक यही है जिस से मैंने अपने जीवन का हर लम्हा बांटा है॥ आज बाँट रही हूँ मेरी दोस्त की एक बहुत खूबसूरत ग़ज़ल आपसे॥ और जानती हूँ आप भी इसे उतना ही पसंद करेंगे जितना कि मैं...
मेरे क़रीब न आओ तुम्हे खुदा की क़सम
मेरे क़रीब न आओ तुम्हे खुदा की क़सम
बाखुदा यूँ न जलाओ तुम्हे खुदा की कसम
मुझे एक उम्र लगी है तुम्हे भुलाने में
न फिर से याद दिलाओ तुम्हे खुदा की क़सम
खुद को खोकर अंधेरों में, मैं गुम होकर ही खुश हूँ
अब कोई लौ न जलाओ तुम्हे खुदा की क़सम
तुम्हे रुखसत किया जबसे, ये पलकें नम हैं तबसे
इन्हें फिर से न रुलाओ तुम्हे खुदा की क़सम
बहुत मुश्किल से सिमटे, बैठे हैं खुद से लिपटकर यूँ
न फिर तूफ़ान सा लाओ तुम्हे खुदा की क़सम
कहीं ऐसा न हो, देखें तुम्हें और फिर बिखर जाएँ
बिना देखे चले जाओ तुम्हें खुदा की क़सम॥सांझ..
कहीं ऐसा न हो, देखें तुम्हें और फिर बिखर जाएँ
ReplyDeleteबिना देखे चले जाओ तुम्हें खुदा की क़सम॥
माशालाह ....गज़ब का शे'र है .....
मैं तो सोच रही थी आपकी ग़ज़ल है ....
नाम के साथ थोड़ा परिचय भी दिया करें ....
निचे रवि शंकर जी की नज़्म भी काबिले तारीफ़ हैं ....
heer ji,
ReplyDeleteAji mujhmein wo baat kahan.. Ye meri jaan hai na, meri saari kamiyaan poori karne ke liye..
gazal pasand krne ke liye shukriya..aati rahiyega. :)
Kya khoob likha hai ....
ReplyDeleteHar sher apne aap me gajab gira rahi hai.
Badhai swikare
Furshat me rahe to mere angan me bhi padhare.
www.ravirajbhar.blogspot.com
Thanx
Deepali ji,
ReplyDeleteye word verification hata lewe... comment dene wale ko ashani hogi.
Thanx
kya baat hai.......wah.
ReplyDeleteu left a comment on naari blog
ReplyDeleteby the way it was a satire in favor of shikha varshney
had you read the disclaimer and various posts of last one wk you would hv understood
please read all the comments there