Wednesday, March 23, 2011

kasam

ये मेरी दोस्त, मेरी यार, मेरी हमराज़, हमदर्द॥ कुल मिलाकर ले दे कर एक यही है जिस से मैंने अपने जीवन का हर लम्हा बांटा है॥ आज बाँट रही हूँ मेरी दोस्त की एक बहुत खूबसूरत ग़ज़ल आपसे॥ और जानती हूँ आप भी इसे उतना ही पसंद करेंगे जितना कि मैं...


मेरे क़रीब न आओ तुम्हे खुदा की क़सम
बाखुदा यूँ न जलाओ तुम्हे खुदा की कसम

मुझे एक उम्र लगी है तुम्हे भुलाने में
न फिर से याद दिलाओ तुम्हे खुदा की क़सम

खुद को खोकर अंधेरों में, मैं गुम होकर ही खुश हूँ
अब कोई लौ न जलाओ तुम्हे खुदा की क़सम

तुम्हे रुखसत किया जबसे, ये पलकें नम हैं तबसे
इन्हें फिर से न रुलाओ तुम्हे खुदा की क़सम

बहुत मुश्किल से सिमटे, बैठे हैं खुद से लिपटकर यूँ
न फिर तूफ़ान सा लाओ तुम्हे खुदा की क़सम

कहीं ऐसा न हो, देखें तुम्हें और फिर बिखर जाएँ
बिना देखे चले जाओ तुम्हें खुदा की क़सम॥


सांझ..

6 comments:

  1. कहीं ऐसा न हो, देखें तुम्हें और फिर बिखर जाएँ
    बिना देखे चले जाओ तुम्हें खुदा की क़सम॥

    माशालाह ....गज़ब का शे'र है .....
    मैं तो सोच रही थी आपकी ग़ज़ल है ....
    नाम के साथ थोड़ा परिचय भी दिया करें ....
    निचे रवि शंकर जी की नज़्म भी काबिले तारीफ़ हैं ....

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  2. heer ji,
    Aji mujhmein wo baat kahan.. Ye meri jaan hai na, meri saari kamiyaan poori karne ke liye..
    gazal pasand krne ke liye shukriya..aati rahiyega. :)

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  3. Kya khoob likha hai ....
    Har sher apne aap me gajab gira rahi hai.


    Badhai swikare

    Furshat me rahe to mere angan me bhi padhare.

    www.ravirajbhar.blogspot.com
    Thanx

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  4. Deepali ji,
    ye word verification hata lewe... comment dene wale ko ashani hogi.

    Thanx

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  5. u left a comment on naari blog
    by the way it was a satire in favor of shikha varshney
    had you read the disclaimer and various posts of last one wk you would hv understood
    please read all the comments there

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