Wednesday, November 23, 2011

अच्छा ही होता कह लेते

अच्छा ही होता कह लेते
हम तुम अपने मन की बातें!

लहरों सी निर्बंध उमड़ती
बनती और बिगडती बातें,
सांझ नदी के सूने तट की
ढलती और सिमटती बातें,

खुले शिकारे और चाँद की
छुपती कई उघडती बातें!
अच्छा ही होता कह लेते..हम तुम अपने मन की बातें!

घुले हवा मे जाने कितने
फूलों के मौसम यायावर,
जीतनी परियां नाचीं मन मे
उतने हलके हुए महावर,

बिना बात के रूठे सपने
रूठी कई सुलगती बातें,
अच्छा ही होता कह लेते..हम तुम अपने मन की बातें!

नहीं लौटती बीती बातें
नहीं लौटते बीते पल-छिन,
कालचक्र गतिमान निरंतर
पावँ धरे आगे गिन-गिन,

सन्नाटों मे वृन्दाबन सी
थिरकीं कई घुमड़ती बातें!
अच्छा ही होता कह लेते..हम तुम अपने मन की बातें!

-amit anand

Wednesday, March 23, 2011

kasam

ये मेरी दोस्त, मेरी यार, मेरी हमराज़, हमदर्द॥ कुल मिलाकर ले दे कर एक यही है जिस से मैंने अपने जीवन का हर लम्हा बांटा है॥ आज बाँट रही हूँ मेरी दोस्त की एक बहुत खूबसूरत ग़ज़ल आपसे॥ और जानती हूँ आप भी इसे उतना ही पसंद करेंगे जितना कि मैं...


मेरे क़रीब न आओ तुम्हे खुदा की क़सम
बाखुदा यूँ न जलाओ तुम्हे खुदा की कसम

मुझे एक उम्र लगी है तुम्हे भुलाने में
न फिर से याद दिलाओ तुम्हे खुदा की क़सम

खुद को खोकर अंधेरों में, मैं गुम होकर ही खुश हूँ
अब कोई लौ न जलाओ तुम्हे खुदा की क़सम

तुम्हे रुखसत किया जबसे, ये पलकें नम हैं तबसे
इन्हें फिर से न रुलाओ तुम्हे खुदा की क़सम

बहुत मुश्किल से सिमटे, बैठे हैं खुद से लिपटकर यूँ
न फिर तूफ़ान सा लाओ तुम्हे खुदा की क़सम

कहीं ऐसा न हो, देखें तुम्हें और फिर बिखर जाएँ
बिना देखे चले जाओ तुम्हें खुदा की क़सम॥


सांझ..

Friday, October 1, 2010

विश्वास की ईंट

झूठ की एक

नन्हीं सी फांस

उखाड़ देती है

विश्वास की

जमी हुई नींव को

फिर कितना ही

सच का गारा

लगाओ

जम नहीं पाती

एक भी ईंट

विश्वास की ...


रचनाकार : संगीता स्वरुप
ब्लॉग
http://gatika-sangeeta.blogspot.com/

मेरे हमनफस तू जो साथ हो
तो किसे मंज़िलों की तलाश हो

चाहे हो बहारों की रहबरी
या कि खार चलते हों हमकदम
वो सफ़र रहेगा सुकूँ भरा
मेरे हाथों में जो तेरा हाथ हो

मेरे हमनफस ! तू जो साथ हो..
तो किसे मंज़िलों की तलाश हो..

चाहे राह निकले खलाओं से
या कि उड़ के गुजरें घटाओं से
कोई दस्त-ओ-दरिया हो रूबरू
या चलें ज़न्नती फ़ज़ाओं से

हर एक शय होगी मय-छलक
चाहे जैसी भी कायानात हो
मेरे हमनफस तू जो साथ हो
तो किसे मंज़िलों की तलाश हो

जो कदम मेरे कभी गिर पड़ें
कभी हौसला ज़मींदोज़ हो
कभी रूह निकल जाए जिस्म से
ये कोई हादसा किसी रोज़ हो

मुझे थाम लेना सनम मेरे
किसी डर की फिर क्या बिसात हो
मेरे हमनफस ! तू जो साथ हो..
तो किसे मंज़िलों की तलाश हो..


रचनाकार : रवि शंकर.
ब्लॉग
http://mujhme-tera-hissa.blogspot.com/