Friday, October 1, 2010

विश्वास की ईंट

झूठ की एक

नन्हीं सी फांस

उखाड़ देती है

विश्वास की

जमी हुई नींव को

फिर कितना ही

सच का गारा

लगाओ

जम नहीं पाती

एक भी ईंट

विश्वास की ...


रचनाकार : संगीता स्वरुप
ब्लॉग
http://gatika-sangeeta.blogspot.com/

मेरे हमनफस तू जो साथ हो
तो किसे मंज़िलों की तलाश हो

चाहे हो बहारों की रहबरी
या कि खार चलते हों हमकदम
वो सफ़र रहेगा सुकूँ भरा
मेरे हाथों में जो तेरा हाथ हो

मेरे हमनफस ! तू जो साथ हो..
तो किसे मंज़िलों की तलाश हो..

चाहे राह निकले खलाओं से
या कि उड़ के गुजरें घटाओं से
कोई दस्त-ओ-दरिया हो रूबरू
या चलें ज़न्नती फ़ज़ाओं से

हर एक शय होगी मय-छलक
चाहे जैसी भी कायानात हो
मेरे हमनफस तू जो साथ हो
तो किसे मंज़िलों की तलाश हो

जो कदम मेरे कभी गिर पड़ें
कभी हौसला ज़मींदोज़ हो
कभी रूह निकल जाए जिस्म से
ये कोई हादसा किसी रोज़ हो

मुझे थाम लेना सनम मेरे
किसी डर की फिर क्या बिसात हो
मेरे हमनफस ! तू जो साथ हो..
तो किसे मंज़िलों की तलाश हो..


रचनाकार : रवि शंकर.
ब्लॉग
http://mujhme-tera-hissa.blogspot.com/