हम तुम अपने मन की बातें!
लहरों सी निर्बंध उमड़ती
बनती और बिगडती बातें,
सांझ नदी के सूने तट की
ढलती और सिमटती बातें,
खुले शिकारे और चाँद की
छुपती कई उघडती बातें!
अच्छा ही होता कह लेते..हम तुम अपने मन की बातें!
घुले हवा मे जाने कितने
फूलों के मौसम यायावर,
जीतनी परियां नाचीं मन मे
उतने हलके हुए महावर,
बिना बात के रूठे सपने
रूठी कई सुलगती बातें,
अच्छा ही होता कह लेते..हम तुम अपने मन की बातें!
नहीं लौटती बीती बातें
नहीं लौटते बीते पल-छिन,
कालचक्र गतिमान निरंतर
पावँ धरे आगे गिन-गिन,
सन्नाटों मे वृन्दाबन सी
थिरकीं कई घुमड़ती बातें!
अच्छा ही होता कह लेते..हम तुम अपने मन की बातें!
-amit anand